पानं

Sunday, February 16, 2025

कर्म करते हुए धर्म धरते हुए


जीवेत शरदः शतं "
कर्म करते हुए , धर्म धरते हुए
विकर्मो से यथाशक्य बचते हुए,
सुकर्मो की शौर्य गाथा रचते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

वीणा के तारों को इतना कसें,
कि राग सुरताल होकर बजें.
तार ढीले किये तो हुई बेसुरी,
जोर ज्यादा लगाया तो टूटे लड़ी.
वर्जनाओं से बचकर, सरजते जियें,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

वही व्याप्त है सम्पूर्ण संसार में,
सारा चेतन , अचेतन पूर्ण है आप में.
भोग को त्याग कर भोग करते हुए,
'त्येन त्यक्तेन भुन्जीथा' को बरतते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

कर्म करने का ही हमें अधिकार हो,
कर्म फल जो मिले वही स्वीकार हो.
अपेक्षा न फल की कदाचित करें,
कर्म करने को बस हम तत्पर रहें.
'कर्मन्येवाधिकारस्ते' को बरतते जियें,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

यम नियम साधें, मन के लिए,
आसन प्राणायाम, तन के लिए.
ध्यान प्रत्याहार से एकाग्र होकर,
धारणा और समाधि का साधन करें.
अष्टांग योग से संवरते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

काम को, क्रोध को, लोभ और मोह को,
अंहकार, मद , राग और द्वेष को.
ज्ञानाग्नि में अर्पित करते रहें,
दया करुणा का वर्धन करते रहें.
प्रभु प्रेम में मग्न रहते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.